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हमारे विचार, हमारी भावनाएं, हमारे कर्म, हमारी चाहतें, हमारे निर्णय, यह सब मन में किसी बिंदु से उठ रहे हैं - वह कौन सा भीतरी बिंदु है जिससे हमारा पूरा जीवन निर्धारित हो रहा है? छोटे से छोटा कोई कर्म या बड़े से बड़ा जीवन का कोई निर्णय, इनका स्रोत क्या है? क्या हमें उसके बारे में पता नहीं होना चाहिए। हम लगातार जीवन में कर्म कर रहे होते हैं और आमतौर पर हमें शायद पता भी नहीं होता कि हमारे विचार, हमारी भावना उठ कहां से रही है, हमारी जिंदगी ही किन मूल्यों पर स्थापित है, क्या हमें इसका संज्ञान नहीं होना चाहिए? हम देखेंगे कि हमारी इच्छाएं - कुछ पाने की, कुछ हासिल करने की, कुछ बन जाने की, यह सब हमारी एक आंतरिक कमी से आती हैं। अपने भीतर हम किसी चीज़ का अभाव महसूस कर रहे होते हैं जिसके चलते हम बाहर की दुनिया में कोई कर्म करते हैं ताकि उससे भीतर महसूस हो रही कमी को हम मिटा सकें। हमारा बाहरी माहौल जिस तरीके का होता है जिसमें हमारा शरीर आता है, हमारा समाज, हमारी आर्थिक व्यवस्था आती है, हमारा लिंग आता है, हमारी संस्कृति आती है, यह सब हमें बताते हैं कि हमारे अंदर जो कमी है वह कैसे पूरी होगी। अगर हम कद में छोटे हैं, हमारे शरीर का जो आकार और रूप रंग है वह एक तरीके का नहीं है, तो हमें लगेगा कि लंबा कद होने पर या सुडौल शरीर होने से हमारी वह कमी पूरी हो जाएगी। अगर हम आर्थिक तौर पर भरे पूरे नहीं है तो हमें लगेगा कि पैसे की कमी हमारी सारी समस्याओं की जड़ है, और पैसा आ जाने पर हमारी वह कमी पूरी होगी। अगर हमें समाज बताता है कि हमारे पास इज्जत, ओहदा और प्रतिष्ठा होनी चाहिए तो हमें लगेगा कि इन समाज द्वारा स्वीकृत मानकों को पा कर हम पूरे हो जाएंगे। एक उम्र में आ जाने के बाद हमें लगेगा कि हमारे पास कोई साथी नहीं है तो किसी और को अपने जीवन में लाने से हमारी वह कमी पूरी हो जाएगी। हमारा बाहरी माहौल हमें तरह-तरह से बता रहा होगा कि हम अपनी कमी को कैसे पूरा करें, लेकिन क्या बिना अपने माहौल से संचालित हुए हम सीधा अपनी इस आंतरिक कमी को ही संबोधित कर सकते हैं? क्योंकि यहीं से ही हमारे जीवन का हर कर्म उठ रहा है, हमें उत्तेजना की कमी महसूस होती है, हमें सुख की चाह होती है, इनका महसूस होना ही यह बताता है कि भीतरी रूप से हम ऊबे हुए और असंतुष्ट हैं। हमारा मन अपने आप को लगातार ही खाली महसूस करता रहता है, वह जो भी काम करता है, कहीं ना कहीं अपने खालीपन को ही भरने के लिए करता है। क्या हम इस खालीपन को भर सकते हैं? क्या जो हमें एक सुराख अपने अंदर महसूस होता है यह बाहरी चीज़ों से भरेगा? क्या हम खुद को सीधे तौर पर देख सकते हैं कि हम क्या हैं? हमारा मन लगातार ही अस्थिर रहता है, उसकी हर कोशिश अपने आप को किसी न किसी रूप में स्थिर करने की होती है। उसको वह स्थिरता, शांति, अपने ही स्वभाव को टटोले बिना नहीं मिल सकती। वह यह जानता है कि उसकी बाहरी दिशा में हर कोशिश नाकाम है, तो कहीं ना कहीं उसे अपने स्वभाव की सच्चाई समझनी होगी, जिसके लिए खुद की मानसिक प्रक्रियाओं को समझना जरूरी हो जाता है। बिना अपने आप को देखे, अपनी रोजमर्रा की सच्चाई से वाकिफ हुए, हम बाहरी प्रभावों से ही संचालित हो रहे होंगे। दुनिया हमें बता रही होगी कि जीवन में संतुष्टि, स्थिरता, शांति कैसे आती है। हम एक नक्शे के हिसाब से अपना जीवन जी रहे होंगे और हमें पता भी नहीं होगा कि हमारा जीवन कोई और चला रहा है हम नहीं। इसीलिए अपनी दिन प्रतिदिन की प्रतिक्रियाओं को देखना, अपनी जिंदगी का एक सतत परीक्षण करना जरूरी हो जाता है, तभी हमें पता चलता है कि जिसको हम अपना जीवन मानते हैं वह वाकई में कितना हमारा है और कितना पराया। छात्रों के साथ संवाद, 21.10.2024 Chapters: 00:00 हमारे बाहरी कर्मों का स्रोत क्या है? 01:56 हमारे निर्णय एक आंतरिक अभाव से निकलते हैं 03:18 हम भीतरी कमी को बाहरी चीज़ों से भरते हैं 04:45 पैसे की कमी का महसूस होना 06:40 सामाजिक प्रतिष्ठा की चाहत 08:07 उत्तेजना की तलाश 10:17 मन की खुद को भरने की चाह 13:41 क्या मन को भरा जा सकता है? 17:09 मन को क्या स्थिर करता है 19:54 हमें खुद को जानने के लिए कोई प्रेरित नहीं करता 21:49 शिक्षा का उद्देश्य