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#बाघ : कवि #केदारनाथ सिंह के कविता संग्रह की कुछ कवितायें / पाठ: #सुमन कुमार बाघ : केदारनाथ सिंह बिंब नहीं प्रतीक नहीं तार नहीं हरकारा नहीं मैं ही कहूँगा क्योंकि मैं ही सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ मेरी पीठ पर मेरे समय के पंजो के कितने निशान हैं कि कितने अभिन्न हैं मेरे समय के पंजे मेरे नाख़ूनों की चमक से कि मेरी आत्मा में जो मेरी ख़ुशी है असल में वही है मेरे घुटनों में दर्द तलवों में जो जलन मस्तिष्क में वही विचारों की धमक कि इस समय मेरी जिह्वा पर जो एक विराट् झूठ है वही है--वही है मेरी सदी का सब से बड़ा सच ! यह लो मेरा हाथ इसे तुम्हें देता हूँ और अपने पास रखता हूँ अपने होठों की थरथराहट..... एक कवि को और क्या चाहिए ! आज सुबह के अख़बार में एक छोटी-सी ख़बर थी कि पिछली रात शहर में आया था बाघ ! किसी ने उसे देखा नहीं अँधेरे में सुनी नहीं किसी ने उसके चलने की आवाज़ गिरी नहीं थी किसी भी सड़क पर ख़ून की छोटी-सी एक बूँद भी पर सबको विश्वास है कि सुबह के अख़बार मनें छपी हुई ख़बर ग़लत नहीं हो सकती कि ज़रूर-ज़रूर पिछली रात शहर में आया था बाघ सचाई यह है कि हम शक नहीं कर सकते बाघ के आने पर मौसम जैसा है और हवा जैसी बह रही है उसमें कभी भी और कहीं भी आ सकता है बाघ पर सवल यह है कि आख़िर इतने दिनों बाद इस इतने बड़े शहर में क्यों आया था बाघ ? क्या वह भूखा था ? बीमार था ? क्या शहर के बारे में बदल गए हैं उसके विचार ? यह कितना अजीब है कि वह आया उसने पूरे शहर को एक गहरे तिरस्कार और घृणा से देखा और जो चीज़ जहाँ थी उसे वहीं छोड़कर चुप और विरक्त चला गया बहार ! सुबह की धूप में अपनी-अपनी चौखट पर सब चुप हैं पर मैं सुन रहा हूँ कि सब बोल रहे हैं पैरों से पूछ रहे हैं जूते गरदन से पूछ रहे हैं बाल नखों से पूछ रहे हैं कंधे बदन से पूछ रही है खाल कि कब आएगा फिर कब आएगा बाघ ? कथाओं से भरे इस देश में मैं भी एक कथा हूँ एक कथा है बाघ भी इसलिए कई बार जब उसे छिपने को नहीं मिलती कोई ठीक-ठाक जगह तो वह धीरे से उठता है और जाकर बैठ जाता है किसी कथा की ओट में फिर चाहे जितना ढूँढ़ो चाहे छान डालो जंगल की पत्ती-पत्ती वह कहीं मिलता ही नहीं है बेचारा भैंसा साँझ से सुबह तक चुपचाप बँधा रहता है एक पतली-सी जल की रस्सी के सहारे और बाघ है कि उसे प्यास लगती ही नहीं कि वह आता ही नहीं है कई कई दिनों तक जल में छूटू हुई अपनी लंबी शानदार परछाईं को देखने और जब राजा आता है और जंगल में पड़ता है हाँका और तान ली जाती हैं सारी बँदूकें उस तरफ़ जिधर हो सकता है बाघ तो यह सचाई है कि उस समय बाघ यहाँ होता है न वहाँ वह अपने शिकार का ख़ून पी चुकने के बाद आराम से बैठा होता है किसी कथा की ओट में !