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सनौली के शवागार और वर्तमान; Sanauli and cremation process till today; EPISODE 332 2 года назад


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सनौली के शवागार और वर्तमान; Sanauli and cremation process till today; EPISODE 332

राखीगढी में जैसे जैसे कार्य आगे बढता जा रहा है यह बात अधिक स्पष्ट होती जा रही है कि सरस्वती-सिंधु घाटी जैसी सभ्यतायें नष्ट नहीं होती बल्कि देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप वे स्वरूप और परिपाटी बदलती रहती हैं हैं तथापि उनमें अंतर्निहित सांस्कृतिक निरंतरता को यदि ध्यान से देखा समझा जाये तब आप इतिहास की उन कड़ियों को जोड़ने में सफल हो सकते हैं जो अंधेरे की चादर ओढे रह गये। पहले तो सभी दर्शकों को इस बात की बधाई कि अपने हालिया अन्वेषण में भारतीय पुरातत्व विभाग को फिर राखीगढी में एक 7000 साल पुराने शहर की खोज करने में सफलता प्राप्त हुई है। यही नहीं यहाँ से लगभग 5000 साल पुरानी आभूषण बनाने की एक फैक्ट्री भी मिली है, तांबे और स्वर्ण निर्मित आभूषण भी प्राप्त हुए हैं। उत्खन क्षेत्र से बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तन, शाही मोहरें तथा बच्चों के खिलौने भी प्राप्त हुए हैं जिनसे वह कालखण्ड कैसा रहा होगा स्पष्ट होता है। यहाँ एक अद्भुत रसोई नुमा संरचना अथवा किचन स्ट्रक्चर भी प्राप्त हुआ है जो हडप्पा कालीन जीवन शैली को तो प्रदर्शित करता ही है, उस सांसकृतिक निरंतरता की ओर भी इशारा है जो एक सभ्यता से दूसरी सभ्यता हस्तांतरित होती चलती है। अंवेषण में यहाँ भी सिनौली की तरह ही एक कब्रगाह प्राप्त हुआ है, वहाँ जो कुछ भी देखा गया उससे यह स्पष्ट है कि वह दौर भी पुनर्जन्म जैसी मान्यताओं में विश्वास रखता था; वस्तुत: दो ऐसी महिलाओं के कंकाल प्राप्त हुए हैं जिनका अनुमानित समय लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व रहा होगा तथापि कब्रमें रखी वस्तुओं और पात्रों से उनकी समाज में रही उच्च पद और प्रतिष्ठा का भान होता है। सिनौली के रथ, हडप्पाकाल की कब्रगाहें तो आकर्षित करती ही हैं लेकिन क्या जो कुछ और जैसा कुछ तब की परिपाटी थी उसका वर्तमान से कोई सम्बंध रहा है? यह प्रश्न इसलिये भी अधिक महत्व का हो जाता है क्योंकि वह राखीगढी हो, सिनौली हो अथवा हस्तिनापुर तीनों ही प्राचीन इतिहास से सम्बद्ध स्थल एक दूसरे के अत्यधिक निकट हैं।

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