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Arjun: The One Man Army || Virat Yudh Gatha by Deepankur Bhardwaj 3 года назад


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Arjun: The One Man Army || Virat Yudh Gatha by Deepankur Bhardwaj

This is a small Tribute to The One Man Army. Our beloved GandivDhari Arjun. Virat war is the greatest war ever fought by any warrior. Arjun single handedly defeated the whole army.... listen and feel proud on our glorious history of Mahanayak Arjun.... Jai Shree Krishna ❤️❤️❤️ Instagram Link :   / bhardwajdeepankur   Twitter Link :   / devildeep7   Mahabharat Bori Critical Edition Link : https://drive.google.com/file/d/1bJIe... Lyrics: आज फिर से महाभारत का किस्सा एक सुनाता हूं, वीरों में वीर जो सर्वश्रेष्ठ था जयगान फिर से उसका गाता हूं। विराट थी समक्ष सेना खड़ी होना युद्ध प्रलयंकारी था, भयभीत कुमार उत्तर अनजान खड़ा धुरा थाम चुका उसके रथ की गांडीवधारी था। धन्य धनंजय धर्म का रक्षक बनकर विराट की ढाल खड़ा, कुरु सेना ना देख सकी उत्तर के रथ पर उनका काल खड़ा। यह वही धनंजय जान है पड़ता जिसके लिए शिव धरा पर आए धरकर वेष एक शिकारी का, अरे खांडव दहन हो या गंधर्व युद्ध अकेला जिष्णु पहले भी हर सेना पर भारी था। उठा कर पढ़ लो महाभारत का पर्व कोई संदेह दूर हो जाएगा, जब जब सब्यसांची क्रोध में होगा समक्ष उसके काल खड़ा थर्रायेगा। धुरा संभाले खड़ा बिभत्सु जैसे विराट की अभेद्य ढाल हो, बृहन्नला का मनमोहक रूप था मानो अर्धनारेश्वर रूप में स्वयं खड़े महाकाल हों। भीष्म द्रोण और अंगराज देख कुमार उत्तर घबराया था, शाल्व वृक्ष से गांडीव उठाकर अर्जुन ने उत्तर को जिष्णु रूप दिखलाया था। फिर गांडीव की टंकार को सुनकर धरती अंबर कांप गए, और यह काल रूप में धनंजय ही है भ्राता दुर्योधन भांप गए। अपने तीखे बाणों से गुडाकेश ने अहंकार दुर्योधन का तोड़ दिया, और भय से कांपे दुर्योधन ने हरी हुई गौमाता को छोड़ दिया। विकर्ण जया और चित्रसेन ने अंगराज को साथ लिया, एक साथ मिलकर फिर सभी ने धनंजय का प्रतिकार किया। इतिहास गवाह था अर्जुन लड़े जहां पर वो रण नहीं हारा जाता है, और गीदड़ चाहे 100 घेर लें सिंह ना मारा जाता है। भालों की वर्षा हुई जिष्णु पर और नभ को कुरूओं ने असंख्य तीरों से पाटा था, पर महाबाहु ने हर अस्त्र-शस्त्र को तिनके की भांति काटा था। एक-एक करके हर योद्धा को जिष्णु ने रण से मार भगाया था, और अधिरथ नंदन संग्रामजित को काल की भेंट चढ़ाया था। पार्थ समक्ष गुरु द्रोण जो आए युद्ध बड़ा ही क्रूर हुआ, और अपने ही शिष्य के शौर्य के आगे गुरु भी थक कर चूर हुआ। पिता को रण में थकता देखा अश्वत्थामा ने बाणों का वेग दिखलाया था, और ऐसे अद्भुत योद्धा को देख जिष्णु भी हर्षाया था। बाण चलाने की गति थी अद्भुत अश्वत्थामा वीर ऐसा शक्तिशाली था, और युद्ध अभी भी चल सकता था पर द्रोणपुत्र का तर्कश हो गया खाली था। खांडव दहन में देव हराकर जिष्णु ने अक्षय तुणीर को पाया था, और अद्भुत धनंजय ने शौर्य दिखाकर गुरुपुत्र को भी पीछे हटाया था। एक बार फिर से अंगराज आवेश में आकर पार्थ समक्ष चुनौती लाए, पर उस दिन ऐसा कोई शस्त्र नहीं था जो गांडीवधारी के आगे टिक पाए। भाले और तीर अंगराज के पार्थ को लगते तिनके समान थे, घायल हुए अंगराज ने पीठ दिखाकर फिर से बचाए अपने प्राण थे। कितने ही रथ ध्वस्त पढ़े थे बड़े बड़े योद्धा भी असहाय थे, एक अकेले पार्क से लड़कर सबके होश ठिकाने आए थे। धरती डोली और अंबर पर नवग्रह डगमगाए थे, जब रणक्षेत्र में अर्जुन से फिर गंगापुत्र टकराए थे। दिव्यास्त्र चलाते पितामह भी फूले नहीं समाए थे, स्वर्ग में बैठे पूर्वज भी पार्थ का शौर्य देख हर्षाए थे। कोलाहल था वातावरण में स्वर्ग लोक भी डोला था, भीष्म के आगे वही पार्थ था जिसे त्रिदेव ने सर्वश्रेष्ठ बोला था। पितामह की पावन देह को अर्जुन के तीरों ने जकड़ लिया, और घायल होकर गंगापुत्र ने रथ का स्तंभ था पकड़ लिया। फिर पितामह के सारथी ने अपना धर्म निभाया था, और जिष्णु से उन्हें दूर ले जाकर पराजित होने से बचाया था। दुर्योधन ने फिर पार्थ को घायल किया जब फेंका उस पर भाला था, भूल हुई थी भारी क्योंकि घायल सिंह से पड़ गया उसका पाला था। पार्थ ने फिर विकराल रूप में दुर्योधन का अहंकार था तोड़ दिया, और अपने प्राण बचाने को दुर्योधन ने क्षत्रिय होकर भी रण को छोड़ दिया। युद्ध ने फिर से करवट बदली धर्म से कौरवों ने मुंह फेर लिया, एक अकेले पार्थ को सभी ने चारों ओर से घेर लिया। भीष्म, कर्ण, कृपा, दुर्योधन गुरु द्रोण और अश्वत्थामा, एक साथ सब लड़े एक से त्याग चुके थे धर्म का जामा। पार्थ के सम्मोहन अस्त्र के आगे बेबस सभी योद्धा लगते थे बस नाम के, अधर्म नहीं यह वही अस्त्र था जो भीष्म ने साधा था परशुराम पे। बालक था तब सारथी पार्थ का फिर भी अर्जुन और उत्तर खड़े सचेत थे, एक अकेले पार्थ के आगे सभी महा योद्धा सेना संग भी बेबस और अचेत थे। प्राण तभी हर लेता अर्जुन यदि धर्म का उसको स्मरण ना होता, खुद को श्रेष्ठ कहने वालों की भी चिता विराट में जलती और महाभारत का कभी रण ना होता। अभी भी जो ना धर्म समझे तो बुद्धिहीन कहलाओगे, पार्थ के शौर्य से ग्रंथ भरे पड़े हैं अरे किस-किस को झुठलाओगे। अभी भी वक्त है धर्म समझ लो पार्थ दोबारा सीख ना देगा, अधर्मी युग में अब विराट की भांति गांडीवधारी प्राणों की भीख ना देगा। अरे गंधर्व युद्ध हो या खांडव दहन विराट में भी जिष्णु के आगे नतमस्तक सेना सारी है, आज भी है और कल भी सर्वश्रेष्ठ रहेगा कृष्ण या मेरा नहीं वो हम सबका गांडीवधारी है।

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