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Sri Durga Saptashati Path in Sanskrit with Durga Yantra (Awaran) | Chandi Path in Sanskrit 7 месяцев назад


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Sri Durga Saptashati Path in Sanskrit with Durga Yantra (Awaran) | Chandi Path in Sanskrit

दुर्गा सप्तशती (चण्डी पाठ - संस्कृत में करने की विधि) ================================= श्री दुर्गा सप्तशती पाठ की ये पूरी जानकारी “श्री दुर्गा सप्तशती, गीता प्रेस, गोरखपुर” पुस्तक से ली गई है।अगर आप ये पाठ करना चाहते है तो आपके पास ये पुस्तक होनी चाहिए। पुस्तक के “पाठ विधि” अध्याय में पूरी विधि दी गई है, आप चाहे तो पहले पुस्तक का ये अध्याय कई बार पढ़ ले। पाठ की संरचना (organization) दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय है और 700 श्लोक है १३ अध्यायों को तीन चरित्रों में बाँटा गया है और हर चरित्र एक देवी को समर्पित है प्रथम चरित्र - श्री महाकाली (अध्याय 1) मध्यम चरित्र - श्री महालक्ष्मी (अध्याय 2, 3, 4) उत्तर चरित्र - श्री महासरस्वती (अध्याय 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13) 6 अंग - कवच, अर्गला, कीलक, प्राधानिकम रहस्य, वैकृतिकम रहस्य, मूर्ति रहस्य को दुर्गा सप्तशती के छह अंग माना जाता है और दुर्गा सप्तशती पाठ बिना अंगों के नहीं करना चाहिए। कवच, अर्गला, कीलक को पाठ (जो की आपके 13 अध्याय है) से पहले और प्राधानिकम रहस्य, वैकृतिकम रहस्य, मूर्ति रहस्य को पाठ के बाद करना चाहिये। शापित और कीलित दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र ब्रह्मा, वशिष्ठ, विश्वामित्र द्वारा शापित है दुर्गा शप्तशती को महादेव ने कीलित भी कर दिया था ताकि कोई अनधिकारी उसकी तीव्र ऊर्जा का दुरुपयोग ना करे। कीलित मतलब पासवर्ड प्रोटेक्टेड या लॉक्ड।मूल पाठ, जो की १३ अध्याय है, उनको करने से पहले हमे पाठ का शापोद्धार और उत्कीलन करना ज़रूरी है। इसका मतलब हमे दुर्गा शप्तशती को शाप से मुक्त करना है और लॉक को खोलना है। ६ अंग दूसरी मुख्य बात ये है कि दुर्गा सप्तशती को आप ६ अंगों के साथ ही करते है वरना आपको पूर्ण फल नहीं मिलेगा छह अंग ये है - कवच, अर्गला, कीलक, प्राधानिकम रहस्य, वैकृतिकम रहस्य, मूर्ति रहस्य पाठ कितने दिन में करे - इसके लिए कई नियम है, और नियमानुसार पाठ ही पूर्ण फल देता है। १ - १ दिन - All 13 chapters २ - २ दिन - First Day - Madhyam Charitra, Second Day - Pratham and Uttar Charitra ३ - महाविद्या क्रम से ७ दिन (१, २, १, ४, २, १, २) ४ - सिर्फ़ मध्यम चरित्र का पाठ (अध्याय २, ३, ४) पुस्तक में यही विधान बताये गये है शापोद्धार (शाप को हटाना) और उत्कीलन (ताले को खोलना) के तरीक़े 1. सप्तशती-सर्वस्व: पहले मंत्रों द्वारा शापोद्धार और बाद में छ अंगों सहित पाठ, मतलब पहले शापोद्धार मंत्रों का जाप और फिर कवच, कीलक, अर्गला, फिर १३ अध्याय और उसके बाद प्राधानिकम रहस्य, वैकृतिकम रहस्य, मूर्ति रहस्य का पाठ 2. कात्यायनी तंत्र: इसमें शापोद्धार और उत्कीलन का एक दूसरा प्रकार बताया गया है - शापोद्धार - सप्तशती के अध्यायों का १३-१, १२-२, ११-३, १०-४, ९-५, और ८-६ के क्रम से पाठ करके अंत में सातवें अध्याय को २ बार पढ़े। ये शापोद्धार हैउत्कीलन - पहले माध्यम चरित्र का, फिर प्रथम चरित्र का, और उसकेबाद उत्तर चरित्र का पाठ करना उत्कीलन है 3. कीलक (ददाती प्रतिग्रहरति के नियम से): कृष्णपक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी को देवी को सर्वस्व समर्पण करके और उन्हीं का होकर उनसे प्रसाद रूप में प्रत्येक वस्तु को उपयोग में लाना ही शापोद्धार और उत्कीलन है 4. एक मत है कि छः अंगों सहित पाठ करना ही शापोद्धार है और अंगोंका त्याग ही शाप है 5. कुछ विद्वान बोलते है की शापोद्धार कर्म ज़रूरी नहीं है क्योकि रहस्याध्यायमें कहा गया है कि जिसे एक दिन में पूरे पाठ का समय ना मिले वह एक दिन में केवल मध्यम चरित्र और दूसरे दिन में शेष दो चरित्रों का पाठ करे। इसके अलावा जो लोग महाविद्या क्रम से प्रतिदिन पाठ करते है उनके लिए भी रोज़ शापोद्धार और उत्कीलन करना संभव नहीं है

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