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बृहदारण्यक उपनिषद introduction Brihadaranyaka Upanishad

सुनिए वैदिक विद्वान स्वामी शांतानंद सरश्वती ''दर्शनाचार्य ''का वैदिक लेख ''बृहदारण्यक उपनिषद का अतिसूक्ष्म परिचय'' इस तरह के वैदिकलेखों प्रेरणादायककहानियां महापुरुषों के #जीवनपरिचय #नीतिगतज्ञान के लिए पंचतंत्र #चाणक्यनीति #विदुरनीति #शुक्रनीति के वचनों के साथ वैदिक भजनों के लिए भी #वैदिकराष्ट्र को लाइक करें #वैदिकराष्ट्र को शेयर करें #वैदिकराष्ट्र को सब्सक्राइब करें धन्यवाद बृहदारण्यक उपनिषद् परिचय यह एकादश उपनिषदों में दशवां उपनिषद् है तथा छह अध्यायों में उपलब्ध है। इसमें 325पृष्ठ हैं । जिसके प्रथम अध्याय में छह खण्ड हैं जिन्हें ब्राह्मण कहकर संबोधित किया गया है। द्वितीय अध्याय में 6, तृतीय में 9, चतुर्थ में 4, पंचम में 14 और षष्ठम में 5 ब्राह्मण हैं इसप्रकार इसमें कुल 44 ब्राह्मण अर्थात् खण्ड हैं। प्रथम अध्याय में उपनिषद् का काल, मृत्यु तथा सृष्टि रचना, देवासुर कथा, अहं ब्रह्मास्मि का अर्थ, ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र का वर्णन, धर्म की उत्पत्ति ,प्राण और इंद्रियों के विवाद में प्राण की सर्वोत्कृष्टता आदि विषयों का वर्णन है। द्वितीय आध्याय में दृप्तबालाकि का अजातशत्रु को ब्रह्म उपदेश की कथा, याज्ञवल्क्य और मैत्री संवाद की कथा तथा मधु विद्या आदि विषयों का वर्णन है । तृतीय अध्याय में जनक की सभा में याज्ञवल्क्य से जनक के पुरोहित अश्वल, उषस्ति चाक्रायण,कुशीतक के पुत्र कहोल, वाचक्नवी गार्गी, आरुणि उद्दालक, विदग्ध शाकल्य विद्वानों के द्वारा प्रश्नों की झड़ी लगा दी जाती है तथा महर्षि याज्ञलवकय के द्वारा विद्वतापूर्ण उनका उत्तर दिया जाता है साथ ही महर्षि याज्ञवल्क्य जी का आत्मविषयक उत्कृष्ट प्रवचन भी संकलित है। चतुर्थ अध्याय अध्याय में विदेह राजा जनक को महर्षि याज्ञवल्क्य जी के द्वारा विश्व के आधारभूत तत्वों का एवं आत्मा आदि विषयों का उपदेश दिया गया है।इसके साथ ही इसमें जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि अवस्था का, तृण जलायुका अर्थात् सुन्डी के दृष्टान्त सहित पुनर्जन्म का, विद्या अविद्या का, तीन ऐषणाओं का तथा याज्ञवल्क्य मैत्रेयी संवाद का एवं संतान निरोध आदि विषयों का उल्लेख है। पांचवें अध्याय में खं , द , हृदय, सत्य, भूः भुवः स्वः, वाक ब्रह्म, वैश्वानर, तप, अन्न ब्रह्म, प्राण ब्रह्म आदि का अर्थ बतलाया गया है। साथ में मरणोपरान्त ऊर्ध्वगमन , उक्थ , यजु , साम , क्षत्र आदि विषयों का वर्णन है तथा अंत में गायत्री की व्याख्या सहित ईशोपनिषद् के मन्त्रों का उद्धरण भी दिया गया है। अंतिम अर्थात् छठवें अध्याय के प्रथम ब्राह्मण अर्थात् प्रथम भाग में प्राण तथा इंद्रियों का विवाद वर्णित है । द्वितीय ब्राह्मण अर्थात् द्वितीय भाग में श्वेतकेतु तथा राजा जैबलि प्रवाहण के 5 प्रश्नों का उल्लेख है। तीसरे ब्राह्मण अर्थात् तृतीय भाग में मन्थ रहस्य अर्थात् उत्कृष्ट सन्तान की प्राप्ति हेतु औषधियों , फलों आदि को मिला कर उसमें उच्च विचारों की भावना भरी जाती है इसके रहस्य का वर्णन है । चतुर्थ ब्राह्मण में गर्भाधान आदि विषयों का वर्णन है। षष्ठ अध्याय के पंचम ब्राह्मण में मातृ सत्ताक परिवार की वंश परम्परा का उल्लेख है । इस प्रकार यह बृहदारण्यक उपनिषद् पूर्ण होता है । स्वामी शांतानंद सरश्वती ''दर्शनाचार्य'' 9977987777 9977957777 Fb-  / indorearyasamaj   Instagram-  / aryasamajindore   Twitter-  / aryasamajindore   Youtube-   / @aryasamajindore3371   Linkedin-https://www.linkedin.com/in/aryasamaj... Website-https://aryavivah.org/ #aryasamaj #aryasamaj_indore #आर्यसमाज_इंदौर

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