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कहानी का लिंक - https://samved.sablog.in/katha-samved... ‘रविशंकर का सितार’ के केंद्र में पचास वर्ष पहले की स्मृतियाँ हैं। कुछ खास समय संदर्भों को छोड़ दें तो अपने परिवेश और प्रभाव दोनों में ही यह कहानी स्वातंत्रयोत्तर भारत के स्वप्न और विकास यात्रा के रूपक की तरह उपस्थित होती है। भूख और ‘सितार’ के द्वंद्व से उत्पन्न विडंबनाओं की पृष्ठभूमि में समानान्तर सभ्यताओं की समीक्षा करती इस कहानी का स्थापत्य ध्वनि के विविध रूपों से विनिर्मित हुआ है। इस कहानी के आरंभ में सितार है और अंत में पकते हुये भात की खदबद। ध्वनि और संगीत के इन दो छोरों के बीच अलग-अलग अर्थ-संकेतों के साथ पदचाप, हंसी, सिक्कों की खनखनाहट और खांसी की आवाजें भी शामिल हैं। इस कहानी को खड़ा करने में ध्वनि के समानान्तर जिस दूसरी चीज़ की महत्वपूर्ण भूमिका है, वह है- रोशनी। आवाज़ और रोशनी की ये विविधवर्णी शक्लें कदम-कदम पर बिछे सन्नाटे और अँधेरे को तोड़ने का जो रचनात्मक जतन करती हैं, वही यहाँ एक रोचक कहानी के रूप में मौजूद है। सन्नाटे के विरुद्ध ध्वनि और अंधेरे के विरुद्ध रोशनी के उपक्रम की यह कहानी कागज के सफ़े पर खत्म होकर भी खत्म नहीं होती, बल्कि हमारे भीतर बेचैनी की एक नई दुनिया का निर्माण करने लगती है। #rakeshbihari #krishnkalpit #kathasamved #samved